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कांवड़ यात्रा पर सियासी संग्राम तेज, बयानों से गरमाया माहौल

दिग्विजय सिंह और एसटी हसन के बयानों पर भाजपा ने किया तीखा पलटवार

नई दिल्ली। कांवड़ यात्रा के साथ एक बार फिर देश की सियासत गर्मा गई है। यात्रा के दौरान कुछ घटनाओं को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं के बयानों पर भारतीय जनता पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने यात्रा में ‘नफरत फैलाने’ की आशंका जताई, जबकि समाजवादी पार्टी के नेता एसटी हसन ने धार्मिक पहचान पूछे जाने की घटनाओं की तुलना ‘आतंकवाद’ से कर दी। इन बयानों को भाजपा ने हिंदू आस्था का अपमान बताया है।

दिग्विजय सिंह और एसटी हसन के बयान बने सियासत का केंद्र

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि राज्य सरकारें अगर कांवड़ यात्रा के लिए सुविधाएं देती हैं तो यह स्वागत योग्य है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल किसी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए किया जाए तो यह चिंताजनक हो जाता है। उन्होंने कहा, “किसी भी सभ्य समाज में नफरत फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।”

वहीं, एसटी हसन ने दावा किया कि उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के दौरान कुछ दुकानदारों और होटल कर्मचारियों की धार्मिक पहचान पूछी जा रही है। उन्होंने इसे ‘धार्मिक आतंकवाद’ जैसा बताते हुए कहा, “धर्म पूछकर कपड़े उतरवाना या नाम पूछना, यह वैसा ही है जैसा आतंकवादी करते हैं।”

भाजपा का कड़ा पलटवार

भाजपा सांसद और प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इन बयानों को हिंदू विरोधी मानसिकता करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह वही सोच है जिसमें ओसामा बिन लादेन को ‘ओसामा जी’, और हाफिज सईद को ‘हाफिज साहब’ कहा जाता है, जबकि कांवड़ यात्रा में ही इन्हें सांप्रदायिकता नजर आती है। त्रिवेदी ने यह भी कहा कि राहुल गांधी ‘डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’ जैसी बैठकों में शामिल होते हैं और कांग्रेस की सोच उसी दिशा में जा रही है।

एसटी हसन ने राज्य सरकार पर लगाए आरोप

एसटी हसन ने उत्तराखंड सरकार पर आरोप लगाया कि वह इन घटनाओं पर आंखें मूंदे बैठी है और अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें समर्थन दे रही है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से इन घटनाओं पर सख्त कार्रवाई की मांग की।

हर साल बनता है राजनीतिक मुद्दा

हर साल सावन के महीने में आयोजित होने वाली कांवड़ यात्रा को लेकर राजनीतिक बयानबाज़ी आम बात हो गई है। जहां भाजपा और हिंदू संगठन इसे श्रद्धा और आस्था का पर्व मानते हैं, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का माध्यम बताकर आलोचना करता है। इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है।

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